Prayagraj Facts: क्यों कहलाए जाते हैं सभी तीर्थों के राजा तीर्थराज प्रयाग
1 min readPrayagraj Facts: दो नदियों के मिलने को संगम जरूर कहते हैं, लेकिन प्रयाग नहीं। प्रयाग ‘प्र’ और ‘याग’ शब्दों को मिलाकर बनाया गया है। जानकार बताते हैं कि यहां ‘प्र’ का अर्थ ‘प्रकृष्ट’ होता है यानी तेजी से बढ़ने वाला और ‘याग’ काअर्थ ‘यज्ञ’ से है। ऐसा स्थान जहां यज्ञ तेजी से फैलते हैं, उसे प्रयाग कहते हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार, प्रयाग तीर्थ में प्रकृष्ट यज्ञ हुए हैं, इसलिए इसे प्रयाग कहा जाता है। यह भी कहते हैं कि वेदों की स्थापना के बाद ब्रह्मा जी ने यहीं पहला यज्ञ किया, इसलिए भी प्रयाग नाम पड़ा। कहते हैं कि सृष्टि का सृजन करने से पहले भी ब्रह्मा जी ने अपना पहला यज्ञ यहीं किया था
पुराणों के अनुसार, सब तीर्थों ने मिलकर ब्रह्मा जी से प्रार्थना की, “हे प्रभु! हम सब तीर्थों में जो सबसे श्रेष्ठ हो, उसे आप सबका राजा बना दें, जिसकी आज्ञा में हम सब रहें।” तब ब्रह्मा जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से अन्य तीर्थों के साथ प्रयागराज तीर्थ की तुलना की और उसका महत्व आंका, जिसमें उन्होंने पाया कि अन्य तीर्थों के मुकाबले प्रयागराज तीर्थ अधिक भारी है। तब ब्रह्मा जी ने प्रयाग को ही सब तीर्थो का राजा बना दिया। उसी दिन से सब तीर्थ इनके अधीन रहने लगे और यह तीर्थराज प्रयाग कहलाए।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देश में कुल 14 प्रयाग हैं। इनमें इलाहाबाद को छोड़कर बाकी पांच प्रयाग उत्तराखंड में हैं और यही प्रमुख प्रयाग माने जाते हैं। वैसे अगर आकार के अनुसार देखें, तो प्रयाग (इलाहाबाद) ही सबसे बड़ा है। उत्तराखंड स्थित पंच प्रयागों में नदियों के संगम पर बहुत थोड़ी जगह है, जबकि इलाहाबाद में संगम पर इतना बड़ा क्षेत्र है कि महाकुंभ का मेला लग जाता है। हर साल माघ मास में भी बहुत बड़ा मेला लगता है। इतना बड़ा संगम क्षेत्र हिंदुस्तान में तो कहीं और नहीं है। इसलिए भी इसे प्रयागराज की उपाधि दी जा सकती है।
Source: Amar Ujala